(हिंदी हूँ मैं...)

मैं हिन्दी हूँ, मैं हिन्दी हूँ, हिंद में जन्मी मैं हिन्दी हूँ
उच्च शिक्षा से शर्मिंदी हूँ , डॉट नहीं मैं बिन्दी हूँ
मैं हिन्दी हूँ, मैं हिन्दी हूँ.....
ग़रीबों की तो संगिनी हूँ , अमीरों की मैं अरुचिनी हूँ
क्षेत्र-भाषाओं को पाटी हूँ, सबको इक डोर में बांधी हूँ
मैं हिन्दी हूँ, मैं हिन्दी हूँ.....
कितनों की मातृभाषा हूँ, कितनों की ही अभिलाषा हूँ
सिंधु सभ्यता से निकली हूँ,हिन्दुस्तान की राजभाषा हूँ
मैं हिन्दी हूँ, मैं हिन्दी हूँ.....
मैं सीधी हूँ और सरल हूँ , पानी की तरह मैं अविरल हूँ
संस्कृत ही मेरी जननी है, उसके कारन मैं अटल हूँ
मैं हिन्दी हूँ, मैं हिन्दी हूँ.....
भारत ही नहीं कई देश ने, मुझको यूँही अपनाया है
मेरे अपनों के कारन ही, विदेशों ने गले से लगाया है
हिंद की पहचान है हिन्दी, हिंद की तो जान है हिन्दी
हिंद में भाषायें अनेक हैं, हिंद में पर एक है हिन्दी
हिन्दी से सब लगता अपना, हिन्दी है बहुतों का सपना
हिन्दी है प्यार की भाषा, हिन्दी है करोड़ों की आशा
हिन्दी बदले कई रूप हैं, हिन्दी के कितने स्वरुप हैं
हिन्दी की पर समझ एक है, हिन्दी तो कइयों में एक है
गौरव कर्ण
पता- E-39, 2nd फ्लोर, सुशांत लोक-3, सेक्टर 57, गुरुग्राम, हरियाणा-122001
गौरव कर्ण
• पता :- गुरुग्राम, हरियाणा
• पेशा :- व्यापार
• विभिन्न साझा संग्रह पुस्तकों में रचनाएँ प्रकाशित
• कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
• अपनी रचनाओं के लिए विभिन्न सम्मान से सम्मानित