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Monday, August 15

मैं हिन्दी हूँ - गौरव कर्ण (हिंदी हूँ मैं...)

 (हिंदी हूँ मैं...)



मैं हिन्दी हूँ

मैं हिन्दी  हूँ, मैं हिन्दी हूँ, हिंद में जन्मी मैं हिन्दी हूँ

उच्च शिक्षा से शर्मिंदी हूँ , डॉट  नहीं  मैं   बिन्दी  हूँ 

मैं  हिन्दी  हूँ, मैं हिन्दी हूँ.....


ग़रीबों की तो  संगिनी  हूँ , अमीरों की मैं अरुचिनी  हूँ 

क्षेत्र-भाषाओं को पाटी हूँ, सबको इक डोर में बांधी हूँ 

मैं  हिन्दी  हूँ, मैं हिन्दी हूँ.....


कितनों की मातृभाषा हूँ, कितनों की ही अभिलाषा हूँ 

सिंधु सभ्यता से निकली हूँ,हिन्दुस्तान की राजभाषा हूँ 

मैं  हिन्दी  हूँ, मैं हिन्दी हूँ.....


मैं सीधी हूँ और सरल हूँ , पानी की तरह मैं अविरल हूँ 

संस्कृत ही मेरी जननी है, उसके  कारन  मैं अटल हूँ 

मैं  हिन्दी  हूँ, मैं हिन्दी हूँ.....


भारत ही नहीं कई देश ने, मुझको यूँही अपनाया है

मेरे अपनों के कारन ही, विदेशों ने गले से लगाया है 


हिंद की पहचान है हिन्दी, हिंद की तो जान है हिन्दी

हिंद में भाषायें अनेक हैं,  हिंद  में पर एक है हिन्दी


हिन्दी से सब लगता अपना, हिन्दी है बहुतों का सपना 

हिन्दी है प्यार की भाषा,  हिन्दी  है करोड़ों  की आशा


हिन्दी बदले कई रूप हैं, हिन्दी के कितने स्वरुप हैं 

हिन्दी की पर समझ एक है, हिन्दी तो कइयों में एक है


गौरव कर्ण 

पता- E-39, 2nd फ्लोर, सुशांत लोक-3, सेक्टर 57, गुरुग्राम, हरियाणा-122001


गौरव कर्ण 

• पता :- गुरुग्राम, हरियाणा

• पेशा :- व्यापार

• विभिन्न साझा संग्रह पुस्तकों में रचनाएँ प्रकाशित

• कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित

• अपनी रचनाओं के लिए विभिन्न सम्मान से सम्मानित

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मैं हिंदी हूँ.... 

 श्रीमती रूपा देवी द्वारा संपादित संकलन. 

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 कविता / Poetry 

 लेख / Article 

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 अंतिम तिथि 
30.08.2022 

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Thursday, August 11

हे मां तेरे चरणों में अर्पित मेरा तन मन -- सुजाता राव (DESH BHAKTI - H)

 (DESH BHAKTI)


हे मां तेरे चरणों में अर्पित मेरा तन मन                                                                      ‌                     ‌‌   हे मां तेरे चरणों में अर्पित मेरा तन मन।। 
शोभित सारा देश हमारा जन जन का यह नारा। 
जहां  न संभव अघ का लेश , संभव केवल पुण्य प्रवेश। देश का गौरव है यह वासी मेरे प्यारे भारतवासी। हिमालय इसका रखवा ला सागर इसकी सीमा। 
हे मां तेरे चरणों में अर्पित मेरा तन मन।। 
भिन्न-भिन्न  रीति -रिवाज , एकता हमारा धर्म, कर्म हमारे अनेक। 
भारतवासी गुलशन के फूल, महक उठती परिमल।  
यह जगमग जगमग सितारा। हे मां तेरे चरणों में अर्पित मेरा तन मन ।। 
इनके कारनामे दर्शित होते जग में। मान होता जग में। जन जन के राम यहां के। देश विदेशों से नाता। 
झांसी की रानी की बलिदानी है। हैं वीरों की गाथा । वैभव यहां की शान हैं । 
हे मां तेरे चरणों में अर्पित मेरा तन मन।।

सुजाता राव 
99489 00450

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Let's celebrate Independence day to salute nation with our own words in edited book DESH BHAKTI by M N VIJAYA KUMAR 

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Let's dedicate our pen for nation....

GENERAL poems theme in Hindi, or English or Telugu

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हिंदी महान - डाॅ मुकेश कुमार (मैं कविता...)

 (मैं कविता...)


हिंदी महान 
          ---------------------------- 
हिंदी है जन- जन की भाषा
सब भाषाओं में है महान  ।
जाति- धर्म का भेद नहीं  है
सब करते इसका गुणगान  ।।
      करते हैं गुणगान यहाँ  के
      गाँव- गंवई के गरीब किसान ।
      बिलकुल है यह सरल सभी में 
       जिससे होता इसका नाम। ।
       आओ मिल- जुल और बढाएं 
       इस हिंदी का अपना मान। 
       हिंदी है जन- जन की भाषा
        सब भाषाओं में है महान। ।
देश हमारा जब गुलाम था
भक्तों ने था किया प्रचार। 
हिंदी भाषा को अपना कर
इंग्लिश को था दिया इंकार ।।
इससे सफल सशक्त हो हिंदी 
भारत का कर दिया उत्थान। 
हिंदी है जन- जन की भाषा
सब भाषाओं में है महान। ।
        राष्ट्र की शान बढानी है हमें 
         राष्ट्र का मान  बढाना है
          सुगम- सुबोध बनाकर हिंदी 
         अब हर घर में  पहुँचाना है।।
          इससे हिंदी सबल बनेगी
           और बढेगा राष्ट्र-सम्मान। 
          हिंदी है जन- जन की भाषा
           सब भाषाओं में है महान। ।         
एक राष्ट्र हो भारत जननी 
एक हृदय हो भाषा हिंदी। 
जन मानस की भाषा हिंदी 
जन- जन के माथे की बिंदी। ।
यत्र- तत्र सर्वत्र हो हिंदी 
फैलजाए  यह सकल जहान ।
हिंदी है जन- जन की भाषा
सब भाषाओं में है महान। ।
        भेद कहीं नहीं करती हिंदी 
        द्वेष कभी नहीं करती है ।
         दूर देश की भाषाओं से
        शब्द ग्रहण कर लेती है ।।
        जब चाहती कर लेती है
         संस्कृत से यह शब्द-निर्माण। 
        हिंदी है जन- जन की भाषा
         सब भाषाओं में है महान। ।

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            कवि-परिचय
--------------------------'-------------- 
डाॅ मुकेश कुमार
मीनापुर  बलहा,जिला- शिवहर,
शैक्षिक योग्यता--------------- 
  एम ए,बीएड, पीजीडीटी,
पीजीडीजेएमसी एवं पी- एच डी
पेशा------------------
कवि,लेखक, अनुवादक, अध्यापक 
एवं स्वतंत्र- पत्रकार , रेडियो- दूरदर्शन
     में साहित्यिक कार्यक्रम 
सम्मान-------------
 1.शोधश्री सम्मान, 2.साहित्य साधना          
            सम्मान        
3. प्रेमचंद कथालोक साहित्य सम्मान 
पत्राचार का पता--------------
डाॅ मुकेश कुमार, नियर मास कंप्यूटर, 
हरपुर ऐलौथ,मुसरीघरारी रोड,
समस्तीपुर, पिन-- 848103
  बिहार

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Wednesday, August 10

बेजुबान पशु पक्षियों को समर्पित - वन्दना जोन "स्तुति" (मैं कविता...)

 (मैं कविता...)


बेजुबान पशु पक्षियों को समर्पित  

एक दिन मैं गाड़ी से स्कूल जा रही थी,
रास्ते में गाय भैंसे बहुत आ  रही थी |

मैंने जैसे ही स्कूटी की रेस को धीरे किया,
गाय चराने वाली महिला ने मेरा पीछा किया |

देखकर यह-2, मैंने अपनी गाड़ी को वहां रोक लिया,
और बोतल निकालकर पानी का दो घूंट पिया|

*महिला ने आकर यू बोला--2
अपने हवाई जहाज को धीरे चलाया करो,
और रास्ते में आने वाले निरीह पशु पक्षियों को बचाया करो |

इस तरह से अनावश्यक  दुर्घटना भी नहीं होगी,
नहीं तो खुदा के दरबार में बड़ी सजा होगी |

मैंने कहा - काकी, मैं तो गाड़ी धीरे ही चलाती हूं,
बस 40 से 60 की स्पीड में ही भगाती हूं |

काकी कहने लगी, सुबह से देख रही हूं,सड़क  खून से सनी पड़ी थी,
क्योंकि रास्ते में कबूतर चिड़िया और गिलहरी मरी पड़ी थी--2 |

काकी एकदम सही थी, गिलहरिया तो रोज मरती थी ,
और यह दृश्य रोज मैं आते जाते देखा करती थी |

पर देखने के बावजूद भी मैं कुछ नही कर सकती थी,
ज्यादा से ज्यादा बस एक कविता लिख सकती थी |

उनकी जिंदगी का हुआ यह नुकसान कौन उठाएगा,
देखना यह पाप हम सबके सिर पर आएगा |

गनीमत तब है, जब कोई अपनी गाड़ी धीरे चलाएगा,
नहीं तो हर जीव अपने साथी के लिए आंसू बहाएगा-2|

वन्दना जोन "स्तुति"
भटेरी
7568160875
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Thursday, June 30

देश आजादी के नाम- श्रीमती रश्मि बुनकर (काव्य धारा)

 काव्य धारा


देश आजादी के नाम
               
  रो रहा है देश,
 और तुम आजादी की बात करते हो।
              लोकतंत्र के नाम पर,
  इंसानियत का कत्लेआम करते हो।
              राजनीति की नुमाइश,      
  तुम बाजारों में करते हो।    
              आजादी के नाम पर,  
  तुम सब का शोषण करते हो।     
             नहीं चाहिए ऐसी आजादी,    
  गर समानता का अधिकार न मिले।  
             नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
  गर मानवता का साथ न मिले।
             हिंदू मुस्लिम करते-करते,
   तुमने खोया अपना भाई-चारा है।
                 झूठे नारे खूब लगाते,
  अपना भारत प्यारा है।
       लोकतंत्र की आड़ में देश को ही लूट रहे,
  भ्रष्टाचारी राजनेता देश का खून चूस रहे।
             फुटपाथ पर पड़ा देश,
   आज खुद पर रो रहा।
   बोलो भारतवासी इस देश का क्या हो रहा ।।

श्रीमती रश्मि बुनकर
पद-प्राथमिक शिक्षक
शाला-एकीकृत शा.शा.मा.वि.जालमपुर
+91 78283 20101

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Sunday, June 26

स्वयं हिंदी बोली -.सुलभा संजयसिंह राजपूत (काव्य धारा)

काव्य धारा


स्वयं हिंदी बोली।

संस्कृत की मैं बेटी कहलाती, अलंकार, रस, छंदों से शोभा पाती।

मेरे सब अपने, कोई गैर नहीं है,

किसी बोली, भाषा से बैर नहीं है।

अरबी, फारसी अंग्रेजी को बहन सा अपनाया,

प्रसन्न हो गई मैं,जब राजभाषा का गौरव पाया।

दरवाजे की ओट से चुपचाप निहारती,

और अपने ही घर में,मैं अपनों को पुकारती।

अंग्रेजी के बढ़ते चलन पर बेटी हिंदी रोती है,

सोचने को विवश ,क्या बेटी सचमुच पराई होती है?

भारत को हर क्षण मैंने प्रेम से जोड़ा है,

पर अपनों ने ही मेरे हृदय को तोड़ा है।

क्यो हिंदी दिवस पर ही याद कर पाते हो?

मैं तो घर की बेटी, हर उत्सव क्यो नही बुलाते हो?

फिर भी मुझे हर हिन्दुस्तानी से मुझे आस है,

मेरे अपनों में  पंत, निराला और कुमार विश्वास।

क‌ई लेखकों और कवियों की सदा से यहीं पहचान है,

और हिंदी है इसीलिए तो हिंदुस्तान है,

हिंदी है इसीलिए तो हिंदुस्तान है।


सुलभा संजयसिंह राजपूत 

सूरत 

गुजरात

+91 91736 80344

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Saturday, June 25

किसान देश के - गिरीश इन्द्र (काव्य धारा)

काव्य धारा


****

किसान देश के

**********

हिन्दुस्तान किसान हैं ,   मानो   सबसे   मूल ।

पहचानो अन्तर्मनस , करो तनिक मत  भूल ।।

*

अन्न सदा उत्पन्न कर ,   भरता  सबका  पेट ।

काट जरूरत जगत की, भरता जग की टेट।।

*

नहीं नजर कोई करे ,   मालिक  हो सरकार ।

खाए जिसका अन्न जग , करे  उसी से  मार।।

*

अपने ही सरकार से  ,   मांगे  अपना  भाग ।

हुआ तंत्र सब अनसुना , मिले न , कोई राग ।।

*

अनशन करते ही रहे , दिया न , कोई ध्यान !

खून बहाया  सड़क पर, बस ! इतना सम्मान।।

*

यह किसान है देश का , देखो  ! खस्ताहाल ।

ध्यान न कोई दे रहा ,  किसको रहा  मलाल।?

*

अन्न नहीं , तो कुछ नहीं , जिसका  है आधार।

जगती का ढोता रहा ,  कृषक  सदा अधिभार ।।

*

नेताओं ! कहना सुनो ! तुम हो जिसके  लाल !

उस किसान का तुम नहीं, नीचा करना  भाल।।

*

अन्न - भूमि माता हुई , जीवन - जननी  मान।

नित सेवा करते  रहो , दे  मन  से    सम्मान । 


गिरीश इन्द्र

+91 88962 39704

c/o डा विजय प्रताप सिंह जी, 

श्री दुर्गा शक्ति पीठ, 

अजुबा,  

आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२७

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Friday, June 24

मैं - हरिओम कुमार (काव्य धारा)

काव्य धारा


मैं

मैं द्रोणाचार्य नहीं हूँ,
जो कभी तो शिष्य-मोह में कटवा लूँ
किसी एकलव्य का अँगूठा
और कभी पुत्र-मोह में शस्त्र त्याग दूँ ,
कटवा लूँ अपना ही सिर,
पर न छोड़ पाऊँ अनीति का साथ
नीति के बहाने से,
जो कर देता है मजबूर 
किसी सत्यवादी को भी 
अर्धसत्य का सहारा लेने को।

और न ही मैं कर्ण हूँ
कि थोड़े से मान के लिए 
प्रतिज्ञाबद्ध होकर
अन्याय का साथ दूँ,
उसके लिए मर मिटूँ, ...नहीं!

मैं तो कहीं न कहीं खुद को
जुड़ा हुआ पाता हूँ
एकलव्य के कटे हुए अंगूठे से
क्योंकि मैं निराश्रय का आश्रय हूँ,
गम के होठों पर
खुशियों की मुस्कान की चाहत हूँ 
और
मरणासन्न का जीवन बचा पाने का
हर सम्भव प्रयत्न हूँ;
जी हाँ मैं मुकम्मल रूप में कुछ नहीं,
बस मुकम्मल की एक कोशिश हूँ !


हरिओम कुमार
अतिथि प्राध्यापक,
ललित नारायण जनता महाविद्यालय,
झंझारपुर, मधुबनी(बिहार)
+91 80848 08349
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मस्ती बचपन वाली - आकांक्षा रूपा चचरा (काव्य धारा)

काव्य धारा


शीर्षक-  मस्ती  बचपन वाली

सहजता थी, सादगी थी,बंदगी थी।

ये सोशल मीडिया और इंटरनेट नहीं था तो ज़िन्दगी थी

कच्चे  घरों मे सच्चे  दिल थे 

बड़ी मौज मे कटती थी   जिंदगी 

नानी के घर मे मस्ती का आलम

भजन  संध्या  करते  हुए सीखते अच्छे संस्कार  हम

वो बिजली गुल होते ही हल्ला मचाते

छत पर बिस्तर लगाते फिर मस्ती  मे मस्त होकर 

अंताक्षरी गाते.....

माँ  को खुश  देखते हम जब वो 

नानी से ढेरों बातें  करती उनकी गोद मे सिर रख

लेती।

  माँ  अपनी आँखों  मे बचपन की यादें समेट 

लेती ।

पडोस  वाले  भी माँ  को मिलने आते

रिश्तो  की मिठास  चारो और फैल जाती जब 

माँ  पडोसी  को भी चाचा कह कर परिचय करवाती।

चवन्नी  मिलती, नाना जी के पैर दबाने से।

खूब मजे से आइसक्रीम  खाते मामा जी के लाने से

मौसी देती मक्खन  वाले परांठे , दही,पकौडे

खाते।

हम 

जिंदगी मे खेल कूद का मजा बड़ा ही  न्यारा  था।

कबूतरों को बाजरा  खाते देख झूमते गाते थे।

तोते के संग गाते गाते देख नानू  रटू 

तोता कह के चिड़ाते थे।

नानी-दादी हमको कहानी सुना कर सुलाती थी।

पिताजी  की सीख हमारा आत्म  विश्वास  बढ़ाती थी।

काश ! आज की पीढ़ी  जिंदगी  का वो स्वाद चख पाती।




आकांक्षा रूपा चचरा 

8984648644

कटक ओडिशा

........,.........     

पद- शिक्षिका, लेखिका,वरिष्ठ  कवियत्री, समाज सेविका

सम्प्रति -  लखनऊ  पत्रिका--की मुख्य  सलाहकार, ब्यूरो चीफ 

कार्यरत्त--- गुरू नानक पब्लिक स्कूल कटक ओडिशा मे शिक्षिका  


प्रकाशित कृति - आकांक्षा  के मुक्त, डा॰ पूर्ण नन्दा ओझा की जीवनी ,अनवरत साझा संकलन,अरुणोदय त्रैमासिक  पत्रिका मे साझा संकलन।

सम्मान - कनाडा से साहित्य रथी  सम्मान, काव्य श्री सम्मान,  नारी अस्मिता सम्मान ( महाराष्ट्र)

लखनऊ- काव्य रथी सम्मान 

देवरिया उत्तरप्रदेश-साहित्य शक्ति संस्थान

संयोजक

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Sunday, June 19

हिंदी का ऊँचा महत्व -विश्वनाथ कोर्वेता (काव्य धारा)

काव्य धारा


हिंदी का ऊँचा महत्व

हिंदी हमारी शान है
हिंदुस्तान की जान है
जिसके कारण दुनिय में
भारत की पहचानहै।

     बालकों की तोतली बोली..
      "लेल गाली, लेल गाली
        बली प्याली, लेल गाली"

         शहद से भी मीठी मीठी,
          नन्हे बच्चों की हिंदी बोली
          चाहे कोई पर्व आये..
           या हो आये होली,
          गीत खुशी के गाते सुनकर
           मीठी  लगे बोली। 

 देवनागरी लिपि इसकी
  सभी भाषाओं की जननी है,
  महत्व कितना ऊँचा इसका 
  हर भाषा  इसकी  रुणी है। 

         बुंदेले बोलों से हिंदी
         कविताओं की शान है,
          रचना करनेवालों पर
          मेरा भी अभिमान है ।
हिंदी हमारी शान है
हिंदुस्तान की जान है
जिसके कारण दुनिया में
भारत की पहचान है ।

विश्वनाथ कोर्वेता 
Rtd. Hindi Pandit.
+91 94415 90015
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गिरीश - सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल” (काव्य धारा)

काव्य धारा


काव्य  : शैलाधिराज 
शीर्षक : गिरीश

मेरे शैलेन्द्र ओ मेरे अति विराट्
साक्षात, तत्वज्ञ, गरिमा महान
पुंसकता के समुच्चित प्रकाश
मेरी मातृका के तुषार शेखर
मेरे हिन्द के अलौकिक उत्तमांग
मेरे शैलेन्द्र ओ मेरे अति विराट्। 

युग-युगान्तर से दुर्जेय निरोध उन्मुक्त
युग-युगान्तर उद्धताभ्युदित सदा श्रेष्ठ
अनन्त गगन में खींच रहा
जुगों से किस विभूति का विस्तार
कैसी अक्षुण्य यह चिर-प्रणिधान
हे साधुवर! आपका कैसा यह अदित प्रहाण
तू महाविल में शोध रहा 
किस गूढ़ प्रश्न का निदान
द्विविधा का कैसा प्रचंड पाश
मेरे शैलेन्द्र ओ मेरे अति विराट्। 

ओ शान्त योग साधना में लीन व्रती
क्षण भर को भी तो कर खोल नयन
हे अग्निशिखाओं से भी दग्ध, आकुल
छटपटा रहा है चरण पर विश्वधाम
मेरे शैलेन्द्र ओ मेरे अति विराट्।

तेरे आँचल से शीतल भयी देवभूमि महान
सिंधु गंगा ब्रम्हपुत्र ये तीनों नाम प्रमत्त
जिस महालय की ओर बही
तेरी पिघली हुई अनुकंपा उदात्त
मेरे शैलेन्द्र ओ मेरे अति विराट्।

जिसके गोपुर पर खड़ा क्रांत
तूने की परिधिकांत आह्वान
मर्यादा-खंडित करना पीछे
इसके पहले कर मेरा शीश कटान।
मेरे शैलेन्द्र ओ मेरे अति विराट्।

इस तीर्थ-स्थल पर हैं अभी भी तपस्वी
आज आन पड़ी विपदा भीषड़
विकल तेरे संतान तड़प रहे
काट रहे चारों तरफ से विचित्र उरंगड़।
मेरे शैलेन्द्र ओ मेरे अति विराट्।

कितने रत्न लुट गये 
लुप्त कितने ऐश्वर्य हुए तमाम
तू योग में अनुरक्त ही रहा
इधर निर्जन हुआ मंजुल विश्वधाम। 
मेरे शैलेन्द्र ओ मेरे अति विराट्।


✍🏿 सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”
      सिंगरौली (मध्यप्रदेश)
9471358203



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Saturday, June 18

सार्वभौमिक सत्य - पुरुषोत्तम लाल सोनी (काव्य धारा)

काव्य धारा

सार्वभौमिक सत्य 

भावना का मै सुखद अहसास पाना चहता हूं।
जिन्दगी के अनछुए आकाश पाना चाहता हूं।।

पृकृति का हर रुप अवलोकन करुं।   
हर श्वांस अरु विश्वास मे  चिन्तन करुं ।
बिन कसौटी के अटल विश्वास पाना चाहता हूं। 
जिन्दगी के अनछुए आकाश पाना चाहता हूं।।

है नियति मे ही नियत, होगा वही जो वो करेगा। 
किन्तु गीता मे लिखा सतकर्म ही मारग बनेगा।
फिर भी उसकी दी लकीरों को मिटाना चाहता हूँ।
जिन्दगी के अनछुए आकाश पाना चाहता हूँ।

पंचतत्वों मे समाहित ज्ञान का भंडार सारा, 
क्यों तलाशा जा रहा मंजर, असत जीवन हमारा ।
फिर भी मन, नाहक कुतर्कों मे, फँसाना चाहता हूँ। 
जिन्दगी के अनछुए आकाश पाना चाहता हूँ ।

ना रुके हैं कृष्ण, ना ही,भीष्म, न अर्जुन रुके। 
ना रुकी गति चक्र की, पर मृत्यु के आगे झुके।
फिर भी ममता मोह माया मे, उलझता जा रहा हूँ। 
जिन्दगी के अनछुए आकाश पाना चाहता हूँ।

कर्म से मत विमुख हो, चिन्तन करो, इस नियति का।
कर्मसाध्या हो बनो सतमार्ग  खोजी जगत का।
भूलकर अस्तित्व मै, किस ओर जाना चाहता हूं।
जिन्दगी के अनछुए आकश पाना चाहता हूँ।

आज पुरुषोत्तम पुनः इस सत्य पर मंथन करो।
जीव जब नश्वर यहाँ तो क्यों करुण क्रंदन करो।
आत्मा और मृत्यु ही, इस जगत का कटु सत्य है।
मै चराचर जीव को, फिर सच बताना चाहता हूं।
जिन्दगी के अनछुए आकाश पाना चाहता हूं।।
जिन्दगी के मै सुखद अहसास पाना चाहता हूँ।

सत्य है, रिश्ते यहाँ के स्वार्थ मे ही हैं समाये, 
जो गये वो आज तक उस रुप मे वापस न आये।
सार्वभौमिक सत्य को मै,  क्यों बदलना चाहता हूं।
जिन्दगी के अनछुए आकाश पाना चाहता हूँ।

पुरुषोत्तम सोनी"मतंग"
लखनऊ
9335921106

सम्प्रति.. 
से.नि. अधीक्षक, 
पुलिस सतर्कता विभाग उ.प्र. एवं वर्तमान मे सम्पादक, अरुणोदय हिन्दी त्रैमासिक, एवं समीक्षक, पूर्व मे प्रकाशित दस कवियों का साझा संकलन," मधूलिका काव्यांजलि,

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Wednesday, June 8

फेरीवाला- अनिल कुमार ( काव्य धारा )

काव्य धारा


फेरीवाला

कड़ी धूप है
बाहर लू का कहर
धरती तपती है
सुबह, शाम, दुपहर
सब बंद है
घर की दीवारों के अंदर
लेकिन, 
एक सूर चिल्लाता है
बार-बार, कई बार
जोर-जोर से
सूनी गलियों में 
एक कर्कश स्वर
पुकार लगाता, दोहराता है
तपते अम्बर-धरा
लू-तपन को सहता
अक्सर
गलियों-सड़कों से 
फेरीवाला
क्रय-विक्रय का
कुछ सामान लिये
रोज गुजरता, आता-जाता है।


अनिल कुमार
वरिष्ठ अध्यापक हिन्दी
    ग्राम देई, जिला बूंदी, राजस्थान

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Tuesday, June 7

कली के याद में- सनल कक्काड (काव्य धारा)

काव्य धारा


कली के याद में

बैठा था मैं माला गूँदने केलिए
अपने भगवान को पहनाने को
सुंदर-रंग-बिरंगी कलियों से
 मैं अच्छी माला गूँद रहा था।

तब एक सुंदर कली मुझे देखकर मुस्कुराता था
मैं ने उसे उठा लिया, कितना कोमल था वह ,
मैं ने देखा था उसमें , एक अत्याचारी कीड को,
कली के कोमलता को वह काट काट खा रहा था।

मन में याद आई दादी की बातें
अच्छे फूलों से ही भगवान को माला दो
मैं पीडा के साथ उसे छोड दिया
तब वह पूछता था मुझसे मेरी गलती बता दो।

मेरे सौंदर्य को मोह करके एक क्रूर ने छीन लिया
उस में गलती मेरी कोई भी नहीं थी.
सब कहती थी ईश्वर हमारे रक्षा करेंगें
लेकिन अब ईश्वर को भी न चाहे तो मुझे कौन बचाएगा।

सनल कक्काड
कक्काड मना
ऊरकम कीषु मुरी
मलप्पुरम
केरला 676519
फोन नम्बर 85908 16004

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प्रकृति - जुबेर हवालदार (Geeta Prakashan Bookswala's Anthology "ऑपरेशन सिंदूर की शौर्यगाथा")

    (Geeta Prakashan Bookswala's Anthology  " ऑपरेशन सिंदूर की शौर्यगाथा")             प्रकृति 💐..................💐 नदिया, त...