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Saturday, June 25

किसान देश के - गिरीश इन्द्र (काव्य धारा)

काव्य धारा


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किसान देश के

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हिन्दुस्तान किसान हैं ,   मानो   सबसे   मूल ।

पहचानो अन्तर्मनस , करो तनिक मत  भूल ।।

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अन्न सदा उत्पन्न कर ,   भरता  सबका  पेट ।

काट जरूरत जगत की, भरता जग की टेट।।

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नहीं नजर कोई करे ,   मालिक  हो सरकार ।

खाए जिसका अन्न जग , करे  उसी से  मार।।

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अपने ही सरकार से  ,   मांगे  अपना  भाग ।

हुआ तंत्र सब अनसुना , मिले न , कोई राग ।।

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अनशन करते ही रहे , दिया न , कोई ध्यान !

खून बहाया  सड़क पर, बस ! इतना सम्मान।।

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यह किसान है देश का , देखो  ! खस्ताहाल ।

ध्यान न कोई दे रहा ,  किसको रहा  मलाल।?

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अन्न नहीं , तो कुछ नहीं , जिसका  है आधार।

जगती का ढोता रहा ,  कृषक  सदा अधिभार ।।

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नेताओं ! कहना सुनो ! तुम हो जिसके  लाल !

उस किसान का तुम नहीं, नीचा करना  भाल।।

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अन्न - भूमि माता हुई , जीवन - जननी  मान।

नित सेवा करते  रहो , दे  मन  से    सम्मान । 


गिरीश इन्द्र

+91 88962 39704

c/o डा विजय प्रताप सिंह जी, 

श्री दुर्गा शक्ति पीठ, 

अजुबा,  

आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२७

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