काव्य धारा
रिश्ते
मैं नहीं जानती कि मुझे कविता लिखना भी आता,
कागज कलम ले लिया " काव्य धारा " का नाम ले लिया,
जो भी मन में आया लिख दिया बस बन गयी कविता।
सूरज की तरह उजाला दें हमेशा,
वैसे पिता को ना भूलना।
चन्द्रमा की तरह शीतलता दें हमेशा,
वैसे माता को ना भूलना।
भू भ्रमण की तरह मार्ग दे हमेशा,
वैसे गुरु को ना भूलना।
गुरुत्वाकर्षण की तरह लगे रहे हमेशा,
वैसे भाई को ना भूलना।
पेड और जमीन की तरह साथ रहे हमेशा,
वैसे बहन को ना भूलना।
दूध और पानी की तरह मिलकर रहे हमेशा,
वैसे पति हो या पत्नि को ना भूलना।
नन्हें तारों की तरह चमकते रहते हमेशा,
वैसे प्यारे बच्चों को ना भूलना।
रात और दिन की तरह आते जाते हमेशा,
वैसे भाभी, जीजा को ना भूलना।
मौसम की तरह बदलते रहते हमेशा,
वैसे सगे सम्बन्धी को ना भूलना।
वर्षा की तरह बरसते रहते हमेशा,
वैसे मित्रों को ना भूलना।
बने " स्वर्ग सा परिवार " प्रेम ही भरे हमेशा,
वैसे खून के रिश्ते को ना भूलना।
के कृष्णा कुमारी
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