काव्य धारा
***माँँ ***
माँ तो केवल माँ होती है,
उसकी उपमा कहाँ होती है।
पैदा होने के पहले मरने तक,
माँ सदा साथ रहती है।
माँ तो केवल माँ होती है।
जब रोऊँ तो रोती है,
आँसू भी छुपा लेती है।
हाथ पकड मेरा लेती है,
सदा दिलासा वह देती है।
माँ तो केवल माँ होती है।
हर पल मेरे साथ रहती है,
बंद आँखों में वह रहती है।
अपना लहू पिलाकर मुझको,
वह जिंदा मुझको रखती है।
माँ तो केवल माँ होती है।
निराश कभी में हो जाऊँ तो,
मन को मेरे पढ लेती है।
चुपके से थपकी देती है,
आगे मुझे बढा देती है।
माँ तो केवल माँ होती है।
रोना भी मैं गर चाहूँ,
माँ का ही पल्लू पाऊँ।
पल्लू में छुपा लेती है,
सारे गमों को हर लेती है।
माँ तो केवल माँ होती है।
न होकर भी माँ होती है,
पल-पल मुझसे ये कहते है।
लाल तुझे न गिरने दुँँगी,
बन साँसे तेरी साथ रहेंगी।
कभी तुझे न में छोडुँगी।
माँ तो केवल माँ होती है