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Sunday, June 26

स्वयं हिंदी बोली -.सुलभा संजयसिंह राजपूत (काव्य धारा)

काव्य धारा


स्वयं हिंदी बोली।

संस्कृत की मैं बेटी कहलाती, अलंकार, रस, छंदों से शोभा पाती।

मेरे सब अपने, कोई गैर नहीं है,

किसी बोली, भाषा से बैर नहीं है।

अरबी, फारसी अंग्रेजी को बहन सा अपनाया,

प्रसन्न हो गई मैं,जब राजभाषा का गौरव पाया।

दरवाजे की ओट से चुपचाप निहारती,

और अपने ही घर में,मैं अपनों को पुकारती।

अंग्रेजी के बढ़ते चलन पर बेटी हिंदी रोती है,

सोचने को विवश ,क्या बेटी सचमुच पराई होती है?

भारत को हर क्षण मैंने प्रेम से जोड़ा है,

पर अपनों ने ही मेरे हृदय को तोड़ा है।

क्यो हिंदी दिवस पर ही याद कर पाते हो?

मैं तो घर की बेटी, हर उत्सव क्यो नही बुलाते हो?

फिर भी मुझे हर हिन्दुस्तानी से मुझे आस है,

मेरे अपनों में  पंत, निराला और कुमार विश्वास।

क‌ई लेखकों और कवियों की सदा से यहीं पहचान है,

और हिंदी है इसीलिए तो हिंदुस्तान है,

हिंदी है इसीलिए तो हिंदुस्तान है।


सुलभा संजयसिंह राजपूत 

सूरत 

गुजरात

+91 91736 80344

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