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Thursday, August 11

मैं कौन हूं - सुजाता राव (मैं कविता...)

 (मैं कविता...)


मैं कौन हूं                                                       

मैं कौन हूं ?
मेरा अस्तित्व क्या है? 
आज तक मैं नसमझ सकीं ।
न कोई मुझे समझ सका ।
आखिर मैं कौन हूं 
जी तो रही हूं मैं दूसरों के सहारे ।
किसी का सहारा नहीं बन पाईं। 
जिए तो कैसे जिए ।
मैं आज तक समझ नहीं सकी 
मेरा अपराध क्या है ? 
सहारा तो मिलता है सभी का 
क्या करें जिंदगी में 
खुशहाल की बात दूर 
साथी और सगे भी 
नफरत की नजर से देखते हैं ।
समझ में नहीं आता 
जिए या मरें 
मरते दम तक तो यह गुत्थी सूलझ जानी है ।
क्या ?तकदीर लेकर आएं अपने भी पराए हो गए। 
गम के आंसू आसमान में बादल की तरह तैरने लगे। 
न दिन है।
न रात हैं ।
बरसना तो इनका काम बन गया। 
समय बीतते ही यह 
बरसाती धूप की तरह लगने लगे जीवन में ।
सोचते कुछ और हकीकत कुछ और ही होती है।ं
प्रश्न उठता है मन में आखिर मैं कौन हूं? 
जिंदगी खेल बन गईं। 
हंसना तो जानता है मन 
पर सूरत में नाराजगी की परत छा जाती है। 
मन को सहज  कर, 
संजोग कर रखना चाहती हूं। 
समझ में नहीं आता फिर से यही प्रश्न सामने आता है। 
मैं कौन हूं ? 
मेरा अस्तित्व क्या है?

सुजाता राव 
99489 00450

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Wednesday, August 10

बेजुबान पशु पक्षियों को समर्पित - वन्दना जोन "स्तुति" (मैं कविता...)

 (मैं कविता...)


बेजुबान पशु पक्षियों को समर्पित  

एक दिन मैं गाड़ी से स्कूल जा रही थी,
रास्ते में गाय भैंसे बहुत आ  रही थी |

मैंने जैसे ही स्कूटी की रेस को धीरे किया,
गाय चराने वाली महिला ने मेरा पीछा किया |

देखकर यह-2, मैंने अपनी गाड़ी को वहां रोक लिया,
और बोतल निकालकर पानी का दो घूंट पिया|

*महिला ने आकर यू बोला--2
अपने हवाई जहाज को धीरे चलाया करो,
और रास्ते में आने वाले निरीह पशु पक्षियों को बचाया करो |

इस तरह से अनावश्यक  दुर्घटना भी नहीं होगी,
नहीं तो खुदा के दरबार में बड़ी सजा होगी |

मैंने कहा - काकी, मैं तो गाड़ी धीरे ही चलाती हूं,
बस 40 से 60 की स्पीड में ही भगाती हूं |

काकी कहने लगी, सुबह से देख रही हूं,सड़क  खून से सनी पड़ी थी,
क्योंकि रास्ते में कबूतर चिड़िया और गिलहरी मरी पड़ी थी--2 |

काकी एकदम सही थी, गिलहरिया तो रोज मरती थी ,
और यह दृश्य रोज मैं आते जाते देखा करती थी |

पर देखने के बावजूद भी मैं कुछ नही कर सकती थी,
ज्यादा से ज्यादा बस एक कविता लिख सकती थी |

उनकी जिंदगी का हुआ यह नुकसान कौन उठाएगा,
देखना यह पाप हम सबके सिर पर आएगा |

गनीमत तब है, जब कोई अपनी गाड़ी धीरे चलाएगा,
नहीं तो हर जीव अपने साथी के लिए आंसू बहाएगा-2|

वन्दना जोन "स्तुति"
भटेरी
7568160875
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Saturday, May 28

जिन्दगी औरत की - सी रजनी (काव्य धारा से)

काव्य धारा


जिन्दगी औरत की

माँ - बाप के आँगन की , मीठी किलकारी सी थी वो ।
ममता के सांझ में पलकर, मद ,मगन मस्त ड़ोली थी वो ।

यौवन के आँगन में माँ के आँचल में , पापा के बाहों के झूले में झूली थी वो ।
घर की देहरी पर सुन्दर रंगोली सी , मुस्कान बनकर बिखेरी थी वो ।

सात फेरे और मंगल सूत्र से ,नए डोर में बंधी थी वो ।
न संगी न साथी अपने , सिर्फ सिन्दूर से आज सजी थी वो ।

थाम दामन पति का , कठिन पगदंडीयों पर चली थी वो ।
धूप -छाँव के मेले में देखो कैसे, हर रंग के साथ खेली थी वो ।

अपने साजन की बाहों में , कदम -कदम पर महकी थी वो ।
तरस्ती थी पेट भर रोटी को , हर दिन माटी को रौंदती थी वो ।

काल चक्र  के हाथों आज, उसकी किस्मत भी जैसे रुठी थी ।
उसकी बदनसीबी देख कर , रूह भी तडप तडप कर रोई थी ।

उसके जीवन की दास्ताँ छिपाता , घना अन्धकार भी पिघला था ।
उसका मासूम ,निश्चल चेहरा आज ,गहन निद्रा का दास बना था ।

नसीब न थी अर्थी उसे,न ही कफन का सामान था ।
उसके पति की आँखों के भी आंसू , आज मरता रेगिस्तान था ।

चिता की अग्नि को देखो आज ,न जाने कितनी प्यासी थी ।
मुस्कुराकर गोद में भरा उसे, जैसे उसका आस्वादन करने वाली थी ।

औरत की जिन्दगी का भी सफ़र ,देखो तो कितना अनूठा था  ।
उसके कजरारी आँगन का ,हर ख्वाब आज भी अधूरा था ।

खुशबू की क्यारियों में लिपटी , नाज़ुक पंखुडियों को बिखेरती थी वो ।
आज भी एक नवजात को जन्म देकर भी , न जाने क्यूँ अधूरी सी थी वो ।

C. Rajani
GGHS Musheerabad,
Gr - 2 Hindi  Pandith.
Musheerabad, Hyd.
9652054033

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प्रकृति - जुबेर हवालदार (Geeta Prakashan Bookswala's Anthology "ऑपरेशन सिंदूर की शौर्यगाथा")

    (Geeta Prakashan Bookswala's Anthology  " ऑपरेशन सिंदूर की शौर्यगाथा")             प्रकृति 💐..................💐 नदिया, त...