काव्य धारा

कली के याद में
बैठा था मैं माला गूँदने केलिए
अपने भगवान को पहनाने को
सुंदर-रंग-बिरंगी कलियों से
मैं अच्छी माला गूँद रहा था।
तब एक सुंदर कली मुझे देखकर मुस्कुराता था
मैं ने उसे उठा लिया, कितना कोमल था वह ,
मैं ने देखा था उसमें , एक अत्याचारी कीड को,
कली के कोमलता को वह काट काट खा रहा था।
मन में याद आई दादी की बातें
अच्छे फूलों से ही भगवान को माला दो
मैं पीडा के साथ उसे छोड दिया
तब वह पूछता था मुझसे मेरी गलती बता दो।
मेरे सौंदर्य को मोह करके एक क्रूर ने छीन लिया
उस में गलती मेरी कोई भी नहीं थी.
सब कहती थी ईश्वर हमारे रक्षा करेंगें
लेकिन अब ईश्वर को भी न चाहे तो मुझे कौन बचाएगा।
सनल कक्काड
कक्काड मना
ऊरकम कीषु मुरी
मलप्पुरम
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