(मैं कविता...)
बेजुबान पशु पक्षियों को समर्पित
एक दिन मैं गाड़ी से स्कूल जा रही थी,
रास्ते में गाय भैंसे बहुत आ रही थी |
मैंने जैसे ही स्कूटी की रेस को धीरे किया,
गाय चराने वाली महिला ने मेरा पीछा किया |
देखकर यह-2, मैंने अपनी गाड़ी को वहां रोक लिया,
और बोतल निकालकर पानी का दो घूंट पिया|
*महिला ने आकर यू बोला--2
अपने हवाई जहाज को धीरे चलाया करो,
और रास्ते में आने वाले निरीह पशु पक्षियों को बचाया करो |
इस तरह से अनावश्यक दुर्घटना भी नहीं होगी,
नहीं तो खुदा के दरबार में बड़ी सजा होगी |
मैंने कहा - काकी, मैं तो गाड़ी धीरे ही चलाती हूं,
बस 40 से 60 की स्पीड में ही भगाती हूं |
काकी कहने लगी, सुबह से देख रही हूं,सड़क खून से सनी पड़ी थी,
क्योंकि रास्ते में कबूतर चिड़िया और गिलहरी मरी पड़ी थी--2 |
काकी एकदम सही थी, गिलहरिया तो रोज मरती थी ,
और यह दृश्य रोज मैं आते जाते देखा करती थी |
पर देखने के बावजूद भी मैं कुछ नही कर सकती थी,
ज्यादा से ज्यादा बस एक कविता लिख सकती थी |
उनकी जिंदगी का हुआ यह नुकसान कौन उठाएगा,
देखना यह पाप हम सबके सिर पर आएगा |
गनीमत तब है, जब कोई अपनी गाड़ी धीरे चलाएगा,
नहीं तो हर जीव अपने साथी के लिए आंसू बहाएगा-2|
वन्दना जोन "स्तुति"
भटेरी
7568160875
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