काव्य धारा

फेरीवाला
कड़ी धूप है
बाहर लू का कहर
धरती तपती है
सुबह, शाम, दुपहर
सब बंद है
घर की दीवारों के अंदर
लेकिन,
एक सूर चिल्लाता है
बार-बार, कई बार
जोर-जोर से
सूनी गलियों में
एक कर्कश स्वर
पुकार लगाता, दोहराता है
तपते अम्बर-धरा
लू-तपन को सहता
अक्सर
गलियों-सड़कों से
फेरीवाला
क्रय-विक्रय का
कुछ सामान लिये
रोज गुजरता, आता-जाता है।
अनिल कुमार
वरिष्ठ अध्यापक हिन्दी
ग्राम देई, जिला बूंदी, राजस्थान