काव्य धारा

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काव्य धारा
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काव्य धारा
संस्कृत की मैं बेटी कहलाती, अलंकार, रस, छंदों से शोभा पाती।
मेरे सब अपने, कोई गैर नहीं है,
किसी बोली, भाषा से बैर नहीं है।
अरबी, फारसी अंग्रेजी को बहन सा अपनाया,
प्रसन्न हो गई मैं,जब राजभाषा का गौरव पाया।
दरवाजे की ओट से चुपचाप निहारती,
और अपने ही घर में,मैं अपनों को पुकारती।
अंग्रेजी के बढ़ते चलन पर बेटी हिंदी रोती है,
सोचने को विवश ,क्या बेटी सचमुच पराई होती है?
भारत को हर क्षण मैंने प्रेम से जोड़ा है,
पर अपनों ने ही मेरे हृदय को तोड़ा है।
क्यो हिंदी दिवस पर ही याद कर पाते हो?
मैं तो घर की बेटी, हर उत्सव क्यो नही बुलाते हो?
फिर भी मुझे हर हिन्दुस्तानी से मुझे आस है,
मेरे अपनों में पंत, निराला और कुमार विश्वास।
कई लेखकों और कवियों की सदा से यहीं पहचान है,
और हिंदी है इसीलिए तो हिंदुस्तान है,
हिंदी है इसीलिए तो हिंदुस्तान है।
सुलभा संजयसिंह राजपूत
सूरत
गुजरात
+91 91736 80344
काव्य धारा
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किसान देश के
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हिन्दुस्तान किसान हैं , मानो सबसे मूल ।
पहचानो अन्तर्मनस , करो तनिक मत भूल ।।
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अन्न सदा उत्पन्न कर , भरता सबका पेट ।
काट जरूरत जगत की, भरता जग की टेट।।
*
नहीं नजर कोई करे , मालिक हो सरकार ।
खाए जिसका अन्न जग , करे उसी से मार।।
*
अपने ही सरकार से , मांगे अपना भाग ।
हुआ तंत्र सब अनसुना , मिले न , कोई राग ।।
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अनशन करते ही रहे , दिया न , कोई ध्यान !
खून बहाया सड़क पर, बस ! इतना सम्मान।।
*
यह किसान है देश का , देखो ! खस्ताहाल ।
ध्यान न कोई दे रहा , किसको रहा मलाल।?
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अन्न नहीं , तो कुछ नहीं , जिसका है आधार।
जगती का ढोता रहा , कृषक सदा अधिभार ।।
*
नेताओं ! कहना सुनो ! तुम हो जिसके लाल !
उस किसान का तुम नहीं, नीचा करना भाल।।
*
अन्न - भूमि माता हुई , जीवन - जननी मान।
नित सेवा करते रहो , दे मन से सम्मान ।
गिरीश इन्द्र
+91 88962 39704
c/o डा विजय प्रताप सिंह जी,
श्री दुर्गा शक्ति पीठ,
अजुबा,
आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२७
काव्य धारा
काव्य धारा
शीर्षक- मस्ती बचपन वाली
सहजता थी, सादगी थी,बंदगी थी।
ये सोशल मीडिया और इंटरनेट नहीं था तो ज़िन्दगी थी
कच्चे घरों मे सच्चे दिल थे
बड़ी मौज मे कटती थी जिंदगी
नानी के घर मे मस्ती का आलम
भजन संध्या करते हुए सीखते अच्छे संस्कार हम
वो बिजली गुल होते ही हल्ला मचाते
छत पर बिस्तर लगाते फिर मस्ती मे मस्त होकर
अंताक्षरी गाते.....
माँ को खुश देखते हम जब वो
नानी से ढेरों बातें करती उनकी गोद मे सिर रख
लेती।
माँ अपनी आँखों मे बचपन की यादें समेट
लेती ।
पडोस वाले भी माँ को मिलने आते
रिश्तो की मिठास चारो और फैल जाती जब
माँ पडोसी को भी चाचा कह कर परिचय करवाती।
चवन्नी मिलती, नाना जी के पैर दबाने से।
खूब मजे से आइसक्रीम खाते मामा जी के लाने से
मौसी देती मक्खन वाले परांठे , दही,पकौडे
खाते।
हम
जिंदगी मे खेल कूद का मजा बड़ा ही न्यारा था।
कबूतरों को बाजरा खाते देख झूमते गाते थे।
तोते के संग गाते गाते देख नानू रटू
तोता कह के चिड़ाते थे।
नानी-दादी हमको कहानी सुना कर सुलाती थी।
पिताजी की सीख हमारा आत्म विश्वास बढ़ाती थी।
काश ! आज की पीढ़ी जिंदगी का वो स्वाद चख पाती।
✍
आकांक्षा रूपा चचरा
8984648644
कटक ओडिशा
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पद- शिक्षिका, लेखिका,वरिष्ठ कवियत्री, समाज सेविका
सम्प्रति - लखनऊ पत्रिका--की मुख्य सलाहकार, ब्यूरो चीफ
कार्यरत्त--- गुरू नानक पब्लिक स्कूल कटक ओडिशा मे शिक्षिका
प्रकाशित कृति - आकांक्षा के मुक्त, डा॰ पूर्ण नन्दा ओझा की जीवनी ,अनवरत साझा संकलन,अरुणोदय त्रैमासिक पत्रिका मे साझा संकलन।
सम्मान - कनाडा से साहित्य रथी सम्मान, काव्य श्री सम्मान, नारी अस्मिता सम्मान ( महाराष्ट्र)
लखनऊ- काव्य रथी सम्मान
देवरिया उत्तरप्रदेश-साहित्य शक्ति संस्थान
संयोजक
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(Geeta Prakashan Bookswala's Anthology " ऑपरेशन सिंदूर की शौर्यगाथा") प्रकृति 💐..................💐 नदिया, त...