काव्य धारा

मेदिनी
धरित्री धारिणी वसुंधरा वसुधा,
करती दूर हर प्राणी कोटि की क्षुधा,
प्रकृति का रज रज रहे साभार,
इसके सम कोई न सहे भार।
मां जानकी की माता,
जिसका न कोई भ्राता,
सृष्टि स्थिति की है ज्ञाता,
जिस सम न कोई अभियंता।
आशा निराशा उत्सुकता विमुखता,
हर्ष,विषाद, रात, दिन सम प्राथमिकता,
धात्री का हर जीव धरा ऋणी,
धरती इस कारण है तारिणी।
पांच भौतिक की है आद्या,
दैनंदिनी की है प्रथम पूज्या,
सर्व रोग निवारिणी है अधिष्ठात्री,
सर्वकाल सर्ववस्था वंदनीय है धात्री।
के माधवी
हिन्दी अध्यापिका,
जी बी एच एस,
हिमायतनगर,
सी पी एल,
एंबरपेट,
हैदराबाद,
तेलंगाना।
9502281014