काव्य धारा

शीर्षक - "किस्मत के सहारे मत बैठो"
दृढ़ मेहनत से ही दुनिया में,
हर इंसान का गुजारा होता है।
कर्महीन मानव का जीवन भर,
मुर्दों जैसा इशारा होता है।
कुछ करने में असमर्थ हैं हम,
यह बस एक बहाना होता है।
किस्मत के सहारे बैठने वाले,
कुछ कहाँ भला कर पाता है।
कुछ आज न कर सके तो,
फिर कल पछताना होता है।
ऐसे ही नही मिलती मंजिल,
संघर्ष में खुद को जलाना होता है।
स्वयं को हीरा अगर बनाना है,
तो खुद को खूब तपाना होता है।
दुनियां जीतने का ख्वाहिश है तो,
खुद को सिकन्दर बनाना होता है।
इतिहास रचेगा अपना भी,
दुनियां को दिखाना होता है।
सागर-ए-दिल कर्मयोगी की,
मुट्ठी में सुनहरा सितारा होता है।
लेखक / साहित्यकार
एस. बी. सागर
निदेशक
स्वदेश संस्थान भारत
मो. 8874478080