(Geeta Prakashan Bookswala's Anthology "ऑपरेशन सिंदूर की शौर्यगाथा")
(वीर रस की कविता)
अपने ही देश में हम मिलकर खुशियां मना रहे हैं।
अपने ही आंगन में अपनों संग खिलखिला रहें हैं।
नहीं रास आया तुझको हमारा हंसना खिलखिलाना।
बस कर दिया हम पर हमला एक कायराना।
जाति पूछकर धर्म पूछकर उजाड दिया सिंदूर हमारा।
क्या बिगाड़ा था हमने तेरा जो तूने उजाड़ दिया सिंदूर हमारा।
भारत माता की ओर तूने जो आंख उठाई है।
अब तो समझ ले तू कि हमने तेरी नींद उड़ाई है।
तूझे भारत की नारी के सिंदूर ज्ञान नहीं।
बस ये समझ ले नासमझ कि बार बार अब अपमान नहीं।
सिंदूर की ताकत का अब तुझे एहसास करायेंगे।
तेरे नापाक इरादों जिस्म को जहन्नुम की सैर करायेंगे।
अब धधक उठा है रण का मैदान।
सीमा पर है जंग का ज्ञान।
"आपरेशन सिंदूर" का दिया गया है नाम
रणबांकुरे शेरों ने किया है सिंदूर को प्रणाम।
न सर्द हवाएं रोक पायेंगी
न बर्फ़ की दीवारें थाम पायेंगी।
कश्मीर की घाटी गूंज उठी,
जब रणबांकुरों ने हुंकार भरी।
सहम गये नापाक इरादे रहम रहम की पुकार करी।
"जय भारत" जय सिंदूर कह रणबांकुरांआगे लपका।
दुश्मन का आंतकी के हर आंखों से आंसू टपका।
छाती तान चले रण में बन के साये।
आतंकियों घर में घुसकर उनको मार आए।
दुश्मन के घर में जाकर बंकर फाड़ दिए।
हर आतंकी को जिंदा गाड दिए।
शौर्य रक्त बनकर जब बहकर निकला,
धधकता लहू बर्फ़ पे पिघल पिघलकर बहता चला।
रक्त की हर बूंद में एक आग थी।
दुश्मन की हर चीख़ में भागम भाग थी।
घर पर सुहागिनों मां बहिनों ने मंदिर में दीप जला दिए।
"तू लौटे या न लौटे बेटा, भारत की जय करा दिए।
रणबांकुरे गये रण में शान बचा ली।
भारत मां के तिरंगे की आन बचा ली।
सिन्दूर जो सुहागिनों की मांग में था।
देश के हर आन बान शान में था।
अब भारत मां की मांग में खिल उठा।
हर भारत माता का सपूत गर्व से खिल उठा।
गूंजेगा ये नाम अब युगों युगों तक।
"आपरेशन सिंदूर" से वीरों तक।
जहां पर वीरों का रक्त बहेगा।
वहां फूल नहीं, इतिहास रचेंगा।
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© भूपेंद्र सिंह देव ताऊजी
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