Wednesday, June 8

फेरीवाला- अनिल कुमार ( काव्य धारा )

काव्य धारा


फेरीवाला

कड़ी धूप है
बाहर लू का कहर
धरती तपती है
सुबह, शाम, दुपहर
सब बंद है
घर की दीवारों के अंदर
लेकिन, 
एक सूर चिल्लाता है
बार-बार, कई बार
जोर-जोर से
सूनी गलियों में 
एक कर्कश स्वर
पुकार लगाता, दोहराता है
तपते अम्बर-धरा
लू-तपन को सहता
अक्सर
गलियों-सड़कों से 
फेरीवाला
क्रय-विक्रय का
कुछ सामान लिये
रोज गुजरता, आता-जाता है।


अनिल कुमार
वरिष्ठ अध्यापक हिन्दी
    ग्राम देई, जिला बूंदी, राजस्थान

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