(मैं कविता...)
माँ का प्यारा आँचल
मैं ने अक्सर उन खाली
दिवारों को देखा है , जहाँ
कभी " माँ " की आवाज़ गूंजती थी ।
कभी प्यार तो कभी , डाँट भरी पुचकार भी ,
मुझे हर पल मिलती थी ।
"" लेकिन ••••••••
आज यही दीवारें सूनी हो चुकी है ,
अन्धकार में न जाने , खामोश हो चुकी है ।
तेरा ,
नीन्द से भीगी पलकों का इन्तजार ,
आज भी याद है मुझे ।
मेरी खुशी से उसका चहरा , फूलों सा महकता था ।
मेरे हर दर्द पर न जाने क्यूं कलेजा उसका ,
टूट कर न जाने चूर - चूर हो जाता था ।
"" लेकिन ******
तेरा न होना आज मुझे अखरता है ,
तुझे देखने को मन , आँगन मेरा तरसता है ।
तेरे आँखो की मुस्कान को , तेरी आवाज़ सुनने को मन मेरा तडपत है ।।।
आज तेरे वो हाथ और तेरा वो ,
आँचल छूने को मेरा साया भी
बेचैन सा मचलता है ।।।।।
आज ,,,,,,,,,,,,
ये मेरे हाथ भी खाली ,
मेरे चहरे की मुस्कुराहट भी कोरी ।
मेरे आँखो की ये उदासी ,
तुझको ही पल - पल ढूँढ़ती है ।
सी.रजनी
हिन्दी अध्यपिका
हैदराबाद ।
9652054033
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GEETA PRAKASHAN
Hyderabad
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