(Geeta Prakashan Bookswala's Anthology "HUMSAFAR Shabdhoan ka"
स्थायी पंक्ति (पल्लवी)
किस इतिहास का यह गवाह है? किस जाति ने नहीं देखा यह क्रूरता?
किसके लिए यह मानव शिकार? आआआ
कब से है यह असभ्य गाना? आ आ आ
कब से है यह असभ्य गाना?
पहला छंद (चरणम 1)
फाँसी के तख्ते को चूमा, उन वीर बलिदानों का फल क्या है?
गाँव के बीच में लटकाए गए देश के योद्धाओं का मूल्य क्या है?
आँखों से न दिखने वाले भगवान के नाम पर...
यह अमानवीयता चल रही है...
राक्षसी झुंड का स्वच्छंद विहार...
गिद्धों की पीड़ा का घोर अत्याचार...
घोर अत्याचार।
दूसरा छंद (चरणम 2)
मानवता मिट्टी में मिल गई क्या?
मजहबी विद्वेष सिर चढ़ गया क्या?
मूर्ख राक्षसों की गोलियों की बौछार में...
भरे जीवन टुकड़े-टुकड़े हो गए क्या?
धर्मांधों का पैशाचिक नृत्य।
आग में जली महिलाओं का भावी जीवन...
बिना राह और ठिकाने की राह में...
बिखर गए... काले मोती...
काले मोती...
तीसरा छंद (चरणम 3)
सुंदर भारत का सिंदूर
मनमोहक कश्मीर का मुखमंडल
शांति देवी का प्रसन्न रूप
करुणा से भरी आँखों से परिपूर्ण
निरंतर जननी शारदा का स्मरण... आ आ आ
शुरुआत से अंत तक शिवोहं प्रज्वलित
कश्मीर की महिमा न जानने के कारण...
स्वर्ण भूमि पर रक्त की नदियों का प्रवाह...
रक्त की नदियों का प्रवाह।
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© श्रीनिवासपुरम नागराज परांकुश
Srinivasapuram Nagaraja Parankusa
तिरुपति
9963460211
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