(गीता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित साझा संकलन से)
पुरूष प्रधान है समाज हमारा, नारी आज भी लाचार है ।
अगर यही है सभ्य समाज, तो इस पर मुझे धिक्कार है।।
जहां अंबा दुर्गा काली शारदा, संसार का आधार है ।
जहां जगत की जननी नारी है, हर प्राण का आधार है ।
वहीं पे सीता धरा समाई, चीर हरण में द्रोपदी चित्कार है ।
अगर यही है सभ्य समाज, तो इस पर हमे धिक्कार है।।
जहां कल्पना ने आसमान चिर, अंतरिक्ष में पताका लहराया है।
जहां बछेंद्री के नाम पे हिमालय आज भी इठलाता है।
वहीं निर्भया की सिसकी मे, दबी नारी कुंठा का शिकार है।
अगर यही है सभ्य समाज, तो इस पर हमे धिक्कार है।।
जहां द्रोपदी मुर्मू सर्वोच्च शिखर पर, नारी की बढ़ाती मान है।
जहां प्लेन,ट्रेन और चांद पे जाना, नारी की ही शान है।
वहीं मणिपुर की निर्वस्त्र नारीपे लज्जित सारा संसार है।
अगर यही है सभ्य समाज, तो इस पर हमे धिक्कार है।।
राखी की डोरी भी जहां, बचा न सके बहनों की लाज।
बड़े ओहदे की चकाचौंध में, छूप जाते है सारे राज़।
विकास के उन्मुक्त गगन पर, नारी का अधिकार है ।
पर धरती पर आज भी नारी, देखो कैसी लाचार है।
अगर यही है सभ्य समाज, तो इस पर हमे धिक्कार है।।
बेटा तो है कूल का दीपक, बेटी पराया धन है।
इसी भाव में पले बढे हम, देखो कितने नादान है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नारों से गूंजता सारा जहान है।
और इसी जहान ने भ्रूण हत्या कर, बेटी की ली जान है।
अगर यही है सभ्य समाज, तो इस पर हमे धिक्कार है।
अगर यही है सभ्य समाज, तो इस पर हमे धिक्कार है।।
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© श्रीमती मुनमुन सिन्हा
सहायक शिक्षक शासकीय प्राथमिक शाला गैंजी,
ब्लॉक डोंडीलोहारा, जिला बालोद छत्तीसगढ़
99810 40127
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