(गीता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित साझा संकलन से)
बहुत दिनों से मेरा अंतस मुझे
राम राज्य का स्वप्न दिखा रहा है।
कभी धर्म धर्म की रीति नीति कभी मर्यादा का मान सीख रहा है।
दिव्य स्वप्न के आलोक में सोई आत्मा जगाने लगी है
अंतर्मन प्रकाशित होने लगा है।
अंधकार दूर भागने लगी है
मेरे सपने के राम राज्य में, धर्म का ही बोलबाला है
असत्य लुप्त नीति का प्रसार है धर्म का मुंह काला है ।
"सहसा"
मेरा दिव्य स्वप्न भंग होता है
आत्मा द्रवित हो घबराने लगी है ।
सत्य के धरातल पर पहुंचकर, खुद ही खुद से शर्माने लगी है
धर्म अलसाया घबराया हुआ है
सत्य पर असत्य हावी है ।
मर्यादा का मान चूर हो गया है
मेरे दिव्या सपना का रामराज्य
यथार्थ के कठोर जमीन से
अब कोसों दूर हो गया है।
मेरे स्वप्न का राम राज्य कहीं खो गया है।
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© "बिंदिया" विमला रानी गंगबेर
सहायक शिक्षक
शासकीय प्राथमिक शाला डांडेसरा, ब्लॉक गुरुर जिला बालोद छत्तीसगढ़
97533 91967
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