काव्य धारा

ओ मेरे जीवन साथी आ चले सात समुंदर पार
ओ मेरे जीवनसाथी, आ चले
सात समुंदर पार,चाँद तले,
करे प्यार की बातें चार,
रोज,इंतजार तेरा करती खुद से बातें सौ बार करती,
आशाओं में कई रातें यूं ही निकलती,
दूरी में प्यार ज्यादा, पास में प्यार कम, नहीं समझती,
जब पास तुम होते तो दिल क्यों कुछ ना कह पाता,
चेहरा चाँद जैसे शर्म आता
प्यार कभी ना करना, हर दिल यह जानता,
मिलन ना होने, बिन पानी मछली सा दिल तड़पता,
सब है, फिर यह दिल तेरे लिए तनहा क्यों,
तेरे मेरे स्नेह मिलन को इतना बड़ा लम्हा क्यों, तो,
आ चले, सात समुंदर पार, चाँद तले,करे प्यार की बातें चार,
बसंत आया सावन आ, दिल में आग लगाए,पर तुम ना आए,
हर पल यह आँखें तेरे देखन को,
आंसू की लड़ियां लगाए,दिल पुकार कहे,
आजा ना रे,चले सात समुंदर पार, चाँद तले,
करे प्यार की बातें चार,
जालिम जमाने ने तेरे नाम से इतने ताने दे,
मुझे वहुत सताया, तेरे आने का जब मिला संदेशा,
सुन मेरा दिल सब गम भूल मुस्कुराया,
अब और नहीं, कोई बहाना, आ दुर चले,
वहां जहां प्यार की शाम ढले, चाँद तले, हाथों में हाथ ले, प्यार की बातें करें,
आलिंगन कर, कभी ना जुदा हो,ये कसम ले,
तो चले ओ मेरे हमदम,
सात समुंदर पार, चाँद तले,करे प्यार की बातें चार।।।।
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