Thursday, June 16

सुजन-मन (गीत) - डॉ॰ बुद्धदेव विभाकर (काव्य धारा)

काव्य धारा


सुजन-मन (गीत)



चीखती चिड़िया आधी रात,
धड़कता हृदय हुई क्या बात ? 
बिछाया  कहीं  अहेरी जाल,
निशा  में  फँसी  हुई  बेहाल;
             छुड़ाना निरा लड़कपन है,
           आज का यही सुजन-मन है।

लगायी घर में  जिसने आग,
किस्मत गयी है उसकी जाग,
शपथ ली उसने पूँछ को छू -
गाय की, शीतल हो गयी लू ;
             धर्म का यह अभिनन्दन है,
           आज भी यही सुजन-मन है।

काकली गूँज रही तरु पर,
शीश धुन रहा यहाँ मरुधर,
स्नेह-जल हीन भागता है,
ध्वनि से हृदय जागता है;
            चाहता स्वयं वह शयन है,
           आज का यही सुजन-मन है।

नहीं यह सुख का दर्पण है,
किसी के दुख का दर्पण है,
अनय के लिए  समर्थन है,
न्याय के लिए अमर्षण है;
              न कहता कोई दुर्जन है,
            आज का यही सुजन-मन है।




डॉ॰ बुद्धदेव विभाकर
सहायक प्राध्यापक,
        हिन्दी विभाग,
डी॰बी॰ कॉलेज जयनगर, मधुबनी (बिहार)

मो॰ 9934704478
ईमेल- buddhdeo.vibhakar2@gmail.com


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