काव्य धारा

सुजन-मन (गीत)
चीखती चिड़िया आधी रात,
धड़कता हृदय हुई क्या बात ?
बिछाया कहीं अहेरी जाल,
निशा में फँसी हुई बेहाल;
छुड़ाना निरा लड़कपन है,
आज का यही सुजन-मन है।
लगायी घर में जिसने आग,
किस्मत गयी है उसकी जाग,
शपथ ली उसने पूँछ को छू -
गाय की, शीतल हो गयी लू ;
धर्म का यह अभिनन्दन है,
आज भी यही सुजन-मन है।
काकली गूँज रही तरु पर,
शीश धुन रहा यहाँ मरुधर,
स्नेह-जल हीन भागता है,
ध्वनि से हृदय जागता है;
चाहता स्वयं वह शयन है,
आज का यही सुजन-मन है।
नहीं यह सुख का दर्पण है,
किसी के दुख का दर्पण है,
अनय के लिए समर्थन है,
न्याय के लिए अमर्षण है;
न कहता कोई दुर्जन है,
आज का यही सुजन-मन है।
No comments:
Post a Comment