काव्य धारा

दर्द बहुत है, किससे कहना
दर्द बहुत है, किससे कहना
समझ नहीं आया, कौन अपना कौन पराया |
जिसे भी कहना चाहूं, अपने मन की बात
वह खुद सुनायेगा, अपने मन की बात |
दुसरों का दुख, जब- जब सुना
मेरा तो दुख है ही नहीं, तब जाना |
कोई भी सुनना नहीं चाहेगा, अपना कहना
जो कोई एक होगा, वह सुनेगा |
बस उस एक के लिए, हमें हैं जीना
चाहे जो करना पड़े, वह करना |
पर आत्मविश्वास, हिम्मत से आगे हैं बढना
दुसरों के दुखोंको हरते, आगे बढना |
आशिर्वाद हमेशा हैं, कभी न भुलना
सच्चाई, अच्छाई के साथ, आगे बढना |
दुखों के बाद, खुशियों का आना
एक के बाद एक का, आना जाना |
यही दुनियां का, दस्तूर पुराना
दुनियां बहुत बड़ी, यहां
पता नहीं इस बीच, हम कहां |
दर्द बहुत है, किससे कहना
समझ नहीं आया, कौन अपना कौन पराया |
99899 64167
Good initiative for express feeling as a common life.
ReplyDelete