Wednesday, June 15

दर्द बहुत है, किससे कहना - रूपा बाई संतोष कुमार जनार्धन (काव्य धारा)

काव्य धारा


दर्द बहुत है, किससे कहना


दर्द बहुत है, किससे कहना
समझ नहीं आया, कौन अपना कौन पराया |
जिसे भी कहना चाहूं, अपने मन की बात
वह खुद सुनायेगा, अपने मन की बात |
दुसरों का दुख, जब- जब सुना
मेरा तो दुख है ही नहीं, तब जाना |
कोई भी सुनना नहीं चाहेगा, अपना कहना
जो कोई एक होगा, वह सुनेगा |
बस उस एक के लिए, हमें हैं जीना
चाहे जो करना पड़े, वह करना |
पर आत्मविश्वास, हिम्मत से आगे हैं बढना
दुसरों के दुखोंको हरते, आगे बढना |
आशिर्वाद हमेशा हैं, कभी न भुलना
सच्चाई, अच्छाई के साथ, आगे बढना |
दुखों के बाद, खुशियों का आना
एक के बाद एक का, आना जाना |
यही दुनियां का, दस्तूर पुराना
दुनियां बहुत बड़ी, यहां
पता नहीं इस बीच, हम कहां |
दर्द बहुत है, किससे कहना
समझ नहीं आया, कौन अपना कौन पराया |






रूपा बाई संतोष कुमार जनार्धन
99899 64167

-------------------------------------------------------------------------------------
Call us on 9849250784
To join us,,,

1 comment:

  1. Good initiative for express feeling as a common life.

    ReplyDelete

इक्कीसवीं सदी के महिला कहानीकारों की कहानियों में स्त्री चेतना - नाज़िमा (Geeta Prakashan Bookswala's Anthology "शब्दानंद")

इक्कीसवीं सदी के महिला कहानीकारों की कहानियों में स्त्री चेतना 💐..............................................................................