काव्य धारा

मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री राजपाल सिंह जी को समर्पित
कैसे लिखूं तुम्हें मैं?
कैसी तस्वीर बनाऊं?
मन और देह की भाषा,
परिभाषा लिख ना पाऊं।
उंगली थाम सिखाया चलना,
सतपथ की दिशा बताई,
साहस नित ही रहे बढ़ाते,
तुमने जीत की राह दिखाई।
हर कठिनाई सरल बनी,
हर संभव हल बतलाया,
संस्कार भरे, संस्कृति सिखलाई,
स्वाभिमान का अर्थ बताया।।
उसी भाव की महिमा के,
कुछ अनुभव आज बताऊं,
देव तुल्य हैं! पिता हमारे,
नित श्रद्धा सुमन चढ़ाऊं।
कैसे लिखूं तुम्हें मैं?
कैसी तस्वीर बनाऊं?
अपनी व्यथा जो पीड़ा,
हंस-हंसकर थे सहजाते,
जीवन की हर बाधा का,
चुटकी में हल बतलाते।
धीरज दुख में सीखलाते,
शीतल चंदा जैसा तुम साया,
जीवन से हर ताप मिटाया,
तुम थे जैसे कल्पतरु की छाया।।
सुखमय छांव पिता की,
सारे जग से यही बताऊं,
कभी न भूलो जीवन में,
मैं सबको यही सिखाऊं।
कैसे लिखूं तुम्हें मैं?
कैसी तस्वीर बनाऊं?
निश्छल प्रेम पिता का,
मैं सब से यही बताऊं!
स्मृति चौधरी
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
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