Tuesday, June 21

धूम्रपान ले जान - सुनील कुमार आनन्द (काव्य धारा)

काव्य धारा


धूम्रपान ले जान


अरे नादान!

क्यों कर रहा है धूम्रपान ? बीड़ी पीकर, गुटका खाकर 

टी. बी. कैंसर की मर्ज बुलाकर 

तूं क्यों दे रहा अपनी जान ।


अरे नादान!

क्यों कर रहा है धूम्रपान ? 

जीने से पहले जाता है शमशान

तूं आनन्द कहना मान

छोड़ दो यह विषैला धूम्रपान 

अब तो बन जा अच्छा इंसान।


अरे नादान!

क्यों कर रहा है धूम्रपान ? 

सब कुछ जानकर मत बन अनजान,

गुटका खाकर मत दे जान तूं खुद को पहचान, 

तूं है इंसान अरे नादान! 

तूं क्यों कर रहा है धूम्रपान ?

जो खाते हैं गुटका, तम्बाकू, 

वो समझते हैं कि बहुत ही बहादुर हैं। 

अरे! इंसान के नाम पर कलंक हैं, 

मेरी नजर में गादुर (चमगादड़) हैं।।



सुनील कुमार आनन्द

शिक्षक/कवि

अशोकपुर टिकिया वजीरगंज गोण्डा उत्तर प्रदेश 

मो.8545013417

Email -sunilanand1583@gmail.com


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