काव्य धारा

अरे नादान!
क्यों कर रहा है धूम्रपान ? बीड़ी पीकर, गुटका खाकर
टी. बी. कैंसर की मर्ज बुलाकर
तूं क्यों दे रहा अपनी जान ।
अरे नादान!
क्यों कर रहा है धूम्रपान ?
जीने से पहले जाता है शमशान
तूं आनन्द कहना मान
छोड़ दो यह विषैला धूम्रपान
अब तो बन जा अच्छा इंसान।
अरे नादान!
क्यों कर रहा है धूम्रपान ?
सब कुछ जानकर मत बन अनजान,
गुटका खाकर मत दे जान तूं खुद को पहचान,
तूं है इंसान अरे नादान!
तूं क्यों कर रहा है धूम्रपान ?
जो खाते हैं गुटका, तम्बाकू,
वो समझते हैं कि बहुत ही बहादुर हैं।
अरे! इंसान के नाम पर कलंक हैं,
मेरी नजर में गादुर (चमगादड़) हैं।।
सुनील कुमार आनन्द
शिक्षक/कवि
अशोकपुर टिकिया वजीरगंज गोण्डा उत्तर प्रदेश
मो.8545013417
Email -sunilanand1583@gmail.com
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