Friday, June 17

मैं निराली - डॉ. मीना घुमे (काव्य धारा)

काव्य धारा


मैं निराली


मैं निराली अब निरुढ हो चुकी हूँ ।


मेरी निस्वान सांसों में
निस्तीर्णता की हवा पैदा हो चुकी है 
क्योंकि तुम
निठल्ली कलात्मक निस्संगता से
निस्तब्धता की हद पार कर चुके हो ।


मैं निराली अब निरुढ हो चुकी हूँ ।


निस्वामीयकरण से पूर्व ही 
नीचट हो निस्तरण कर चुकी हूँ 
क्योंकि तुम
निपतन का निदान न कर
निचाशय का सागर बन चुके हो ।


मैं निराली अब निरुढ हो चुकी हूँ ।


निमेषण भूल अब निकुंज की
निरबंसिया बन चुकी हूँ
क्योंकि तुम
निरवशेष परंतु निरर्थक
नियंता बनने की भूल कर चुके हो ।


मैं निराली अब निरुढ हो चुकी हूँ ।



डॉ. मीना घुमे
सहायक प्राध्यापक
दयानंद कला महाविद्यालय , लातूर जिला. लातूर (महाराष्ट्र)
मेल : meenaghume@gmail.com
भ्रमणध्वनि : 9689190729
संप्रति : दयानंद कला महाविद्यालय , लातूर
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