काव्य धारा

मैं निराली
मैं निराली अब निरुढ हो चुकी हूँ ।
मेरी निस्वान सांसों में
निस्तीर्णता की हवा पैदा हो चुकी है
क्योंकि तुम
निठल्ली कलात्मक निस्संगता से
निस्तब्धता की हद पार कर चुके हो ।
मैं निराली अब निरुढ हो चुकी हूँ ।
निस्वामीयकरण से पूर्व ही
नीचट हो निस्तरण कर चुकी हूँ
क्योंकि तुम
निपतन का निदान न कर
निचाशय का सागर बन चुके हो ।
मैं निराली अब निरुढ हो चुकी हूँ ।
निमेषण भूल अब निकुंज की
निरबंसिया बन चुकी हूँ
क्योंकि तुम
निरवशेष परंतु निरर्थक
नियंता बनने की भूल कर चुके हो ।
मैं निराली अब निरुढ हो चुकी हूँ ।
डॉ. मीना घुमे
सहायक प्राध्यापक
दयानंद कला महाविद्यालय , लातूर जिला. लातूर (महाराष्ट्र)
मेल : meenaghume@gmail.com
भ्रमणध्वनि : 9689190729
संप्रति : दयानंद कला महाविद्यालय , लातूर
-------------------------------------------------------------------------------------
Khup sunder 💐
ReplyDeleteKhup sunder 💐
ReplyDeleteKeep it up meena😍👌
ReplyDelete👍👌👌👌
ReplyDeleteBahot sundar
ReplyDelete