Sunday, June 26

जिंदगी क्या है - आनन्द कोठारी (काव्य धारा)

काव्य धारा


जिंदगी क्या है

यह जिंदगी क्या है ? अब तक नहीं समझ पाया हूं मैं.....

कुछ है जो टूटता चला गया....और रोक नहीं पाया हूं मैं..

मैं जीता रहा अपनो की खुशी के खातिर

मगर एक पल भी खुद के लिएं नहीं जी पाया हूं मैं....

जिंदगी की अनजानी राहों पर हर पल धोखा ही खाया है मैंने 

जहाँ खुशी तलाशी थी..वहां भी गम को ही खड़े पाया है मैंने 

कोशिश की मैंने अपने अरमानो को मिटाने की 

मगर टूटे ख्वाबो की चुभन से भी खुद को नहीं बचा पाया हूं मैं 

मुस्कुराते हुएं जीने की कसम खाई थी मैंने..

मगर एक क्षण भी तो दिल से नहीं मुस्कुरा पाया हूं मैं 

चाहता तो था अपनी आँखो को अश्को से न भीगने दू

मगर चाहकर भी पलको की कोर को गीला होने से नहीं रोक पाया हूं मैं .

आसमान पर छेद करने की ख्वाहिश पाल बेठा था मैं 

मगर क्या करू जो जमीन पर ही अपने पांव नहीं जमा पाया हूं मैं 

यह जिंदगी क्या है अब तक तो नहीं समझ पाया हूं मैं



आनन्द कोठारी 

S/O रामसहाय कोठारी 

गंगापुर जिला-भीलवाड़ा(राज.) PIN.311801 

96641 43292

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