Monday, June 20

कविता - गोपाल 'सौम्य सरल' (काव्य धारा)

काव्य धारा


कविता

जब कविता बहती है जलधारा की तरह

तब वह निकलती है आँखो से आँसूओं की तरह


जब कविता एहसास बनती है हवा की तरह 

तब वह श्वाँस बनकर जीवन देती है माँ की तरह


जब कविता महकती है फूलों की तरह 

तब वह घर को चमन कर देती है बागों की तरह


जब कविता हँसती है बचपन की तरह

तब वह मुस्कान भर देती है हँसी की तरह


जब कविता राग सुनाती है सरगम की तरह

तब वह नींद भर देती है आँखो में लोरी की तरह


जब कविता खिलती है जवानी की तरह

तब वह जोश भर देती है वीरों की तरह


जब कविता सबक देती है ठोकर की तरह

तब वह अनुभव से प्रेरित करती है गुरु की तरह


जब कविता रोती है लाचारों की तरह

तब वह झकझोर देती है असमय मौतों की तरह


कविता बेटी है अपनी बेटियों की तरह

पालिए इसको घर की बहू बेटियों की तरह



गोपाल 'सौम्य सरल'

     ढ़ोढसर, जयपुर

     (राजस्थान)

      Mob.No. 8005882210


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3 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. Jiooooooooo मेरे शेर 👍👍💞💞💞👏👏👏👏💪💪💪💪💪💪💪💪💪💐💐🌹🌹🌹

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