काव्य धारा

आग संसाधन है
उषा खामोश थी
जैसे अँधेरा छँटने वाला नहीं उससे।
कोहरा घना होता जा रहा है
लालखड़िया चाक के बदले
आसमान ने बहुत सारा काला
बुदबुदाता राख फैला दिया है
परिवेश में...।
लोग सो रहे हैं, बार-बार जागकर।
हाथ बाहर तक नहीं निकलता
आवाज में भयंकर कँपकँपी है
समय चढ़ता जा रहा है।
आग की अपेक्षा कर रहे हैं सब
और इस अपेक्षा में आग संसाधन बनकर पड़ी है
अंदर! बहुत अंदर!!
किसी कोलियरी के खानों- तहखानों जैसे!
कुछ तो चमकता है
पर जबतक ठीक समझ में आये
चारों तरफ घमासान छिर जाता है
दीपक, मशाल, सूर्य..प्रकाश कहाँ है?
कहाँ है? कहाँ है??
डॉ शंकर कुमार
अतिथि प्राध्यापक,
हिन्दी-विभाग,
रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी (बिहार)
रचना-विधा-- कविता और आलोचना
मोबाइल नं.- 8084247175
Email I'd- shankarkumar807@gmail.com
आवासीय पता:-
ग्राम- खुटौना
पोस्ट- खुटौना
वाया- खुटौना
जिला- मधुबनी (बिहार)
पिनकोड:- 847227
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