काव्य धारा

जब शिकवे शिकायतें
जब शिकवे शिकायतों को
खूंटी पे टांग देती हूँ
एक अजब सा बोझ
दिल से उतार देती हूँ।
भूल जाती हूँ
लाखों कमियां इस ज़माने की
रुई सा खुद को
हल्का मान लेती हूँ।
फिर मैं देखती हूँ जो
शाश्वत सत्य है,
संसार से मोह व्यर्थ है
इच्छाएं जो
सुरसा सा मुंह फैलाती ही हैं
पर....
आत्मसंतोष ही जीवन का
सही अर्थ है।
बबिता प्रजापति
झांसी (उत्तर प्रदेश)
89318 43921
No comments:
Post a Comment