काव्य धारा

नारी
समाज रूपी इस जहान में,
मानी गई है अबला 'नारी'।
जब जब आया विकट समय,
तब सबला बन दिखलाई नारी।
पौराणिक इतिहास गवाह है,
देवी स्वरूप हर नारी की।
विपदा के बादलों को चीरती,
वह धरी रूप अवतारी की।
रणचंडी बन युद्ध भूमि में,
शत्रु सेना पर टूट पड़ीं।
रजिया सुल्तान से लक्ष्मीबाई तक,
बिजली भांति टूट पड़ीं।
आधुनिकता के इस नवयुग में,
हर क्षेत्र में नारी है।
तोड़कर घर की सारी बंदिशें,
पहचान अपनी बनाई है।
नारी का एक दिवस नहीं है,
हर दिन की रानी नारी है,
उसका कभी अपमान मत करें,
आदर करें हर नारी की।
70937 16276
Bahut badhiya andaaz me naari ke baare me aap ne bataaya.
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