काव्य धारा

प्यारी बिटिया
है मेरी बेटी ,घर की शान,
उस पर है मुझको अभिमान ।
सौ जन्मों की पुण्य करम से,
मिला मुझको है तू वरदान ।।
धन्य मानु अपने जीवन को,
है मेरी बेटी लक्ष्मी समान ।
महके बगिया मेरे घर आंगन की,
भरी खुशियों से मेरा जहान ।।
सुनकर उसकी तुतली जुबान,
मिट जाती मेरी सारी थकान ।
ठुमक - ठुमक कर शोर मचाती,
नखरे करती बनती अनजान ।।
चुटुर - पुटुर की उसकी बानी ,
और बनती है बड़ी सयानी ।
उस पर बसती सबकी जान ,
बेटी मेरी परी समान ।।
मेरी बेटी मेरी शान ,
उस पर है मुझको अभिमान ।।
पासीद सक्ती
81037 99457
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