Wednesday, June 22

दोहे और कुंडलिया - ओमप्रकाश द्विवेदी ओम (काव्य धारा)

काव्य धारा


दोहे और कुंडलिया


भूखा नंगा होत है,
                तन पीडा बिलगाय।
दात निपोरत मिलत है,
              विविध कला के संग।।

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विधिना की रचना विचित्र,
               रहत कही ना साम्य।
आकुच बागुच सुघर संग,
                  पटा सारा संसार।
पटा सारा संसार,
        नही मन रमत विधा उहि।
होत हिय मन ही खिन्न,
        दशा देख असम सम वहि।
भोगत सर्व सृष्टि जगत,
     तिष्ठति जग मन मन्दिर तदा।
लखत ओम जग सार,
     विसम सृजन करी विधिना।।

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पंच स्थानी वर्जयेत रूद्राक्ष धारणः।
श्मशाने बिहारे च अशौच कर्मणः।।

निन्दा स्थान  सन्तति प्रादुर्भाव स्थानः।
रूद्राक्ष पवित्रमेव यथा यत्नेन रक्षितः।।

उक्त कथनम् वर्णित यथा शास्त्र पंक्तयः।
तत यत्नेन रक्षितः निज हित साधकः।।

आकाक्षां महत्वाकांक्षा, मनुज मनुज का दोष।
लखत लखावत ही सदा,तत्ही  खेल ही खेल।।




ओमप्रकाश द्विवेदी ओम
94153 63758

पूर्व प्रवक्ता, उदित नारायण इण्टरमीडिएट कालेज पडरौना कुशीनगर।
मान्यता प्राप्त पत्रकार।
प्रान्तीय प्रचार मन्त्री ग्रापये ।
अध्यक्ष, काव्यधारा सामाजिक, साहित्यिक व सास्कृतिक परिषद पडरौना कुशीनगर।
39 वर्ष शिक्षण कार्य पुनः दो वर्ष शिक्षण कार्य।
अद्यतन पत्रकार, सामाजिक सेवक व किसान।
छः रचनाए प्रकाशित
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त्रिपुट, दृष्टि, अंजली,ज्योति पथ,रजनीगंधा, रस कलश।
प्रकाशनाधीन - रश्मि, श्वेता, स्मृति, अनन्या ,कलिमस, मेरी डायरी, भोजपुरिया,बतकही।
जन्म - 15-06- 1952
जन्मस्धान - महुअवा बजराटार देवरिया।
योग्यता -स्नातकोत्तर
लेखन अनुभव- 51 वर्ष
ओमप्रकाश द्विवेदी ओम
पुत्र स्वामीनाथ द्विवेदी 
माता श्री कुला देवी
पत्नी- श्रीमति बच्ची देवी
पुत्र - सत्यजीत कुमार द्विवेदी शिक्षक
तीन पुत्रियाँ- श्वेता, रश्मि, ज्योति।

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