काव्य धारा

स्वाभिमान की आन थे श्री पृथ्वी चौहान
स्वाभिमान की आन थे
पृथ्वी जी चौहान।
धरती मां के वास्ते,
जिनने दी थी जान।।
गौरी को करते रहे,
युद्ध जीत कर माफ।
ऐसे पृथ्वी राज थे
राजा मन के साफ।।
भारत के इतिहास में,
उनसा मिला न और,।
दयावान बलवीर थे
भारत के सिरमौर।।
उनके साथी चंद वर,
कवि थे श्रेष्ट महान।
जो कविता के जोर पर,
रखते हैं पहचान।।
दोनों सच्चे भक्त थे,
भारत मां के लाल।
जिनकी अपनी वीरता,
सच्ची एक मिसाल।।
दोनों भारत में अमर,
दोनों श्रेष्ट महान।
धरती अम्बर उम्रभर,
गाएं गे यश गान।।
दोनों को करता नमन,
सारा भारत देश।
जन जन में अब व्याप्त है,
उनका सद परिवेश।।
बृंदावन राय सरल
वरिष्ट कवि शायर साहित्यकार
सागर
एमपी
मोबाइल 7869218525
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