Saturday, May 28

जिन्दगी औरत की - सी रजनी (काव्य धारा से)

काव्य धारा


जिन्दगी औरत की

माँ - बाप के आँगन की , मीठी किलकारी सी थी वो ।
ममता के सांझ में पलकर, मद ,मगन मस्त ड़ोली थी वो ।

यौवन के आँगन में माँ के आँचल में , पापा के बाहों के झूले में झूली थी वो ।
घर की देहरी पर सुन्दर रंगोली सी , मुस्कान बनकर बिखेरी थी वो ।

सात फेरे और मंगल सूत्र से ,नए डोर में बंधी थी वो ।
न संगी न साथी अपने , सिर्फ सिन्दूर से आज सजी थी वो ।

थाम दामन पति का , कठिन पगदंडीयों पर चली थी वो ।
धूप -छाँव के मेले में देखो कैसे, हर रंग के साथ खेली थी वो ।

अपने साजन की बाहों में , कदम -कदम पर महकी थी वो ।
तरस्ती थी पेट भर रोटी को , हर दिन माटी को रौंदती थी वो ।

काल चक्र  के हाथों आज, उसकी किस्मत भी जैसे रुठी थी ।
उसकी बदनसीबी देख कर , रूह भी तडप तडप कर रोई थी ।

उसके जीवन की दास्ताँ छिपाता , घना अन्धकार भी पिघला था ।
उसका मासूम ,निश्चल चेहरा आज ,गहन निद्रा का दास बना था ।

नसीब न थी अर्थी उसे,न ही कफन का सामान था ।
उसके पति की आँखों के भी आंसू , आज मरता रेगिस्तान था ।

चिता की अग्नि को देखो आज ,न जाने कितनी प्यासी थी ।
मुस्कुराकर गोद में भरा उसे, जैसे उसका आस्वादन करने वाली थी ।

औरत की जिन्दगी का भी सफ़र ,देखो तो कितना अनूठा था  ।
उसके कजरारी आँगन का ,हर ख्वाब आज भी अधूरा था ।

खुशबू की क्यारियों में लिपटी , नाज़ुक पंखुडियों को बिखेरती थी वो ।
आज भी एक नवजात को जन्म देकर भी , न जाने क्यूँ अधूरी सी थी वो ।

C. Rajani
GGHS Musheerabad,
Gr - 2 Hindi  Pandith.
Musheerabad, Hyd.
9652054033

-------------------------------------------------------------------------------------
Call us on 9849250784
To join us,,,

No comments:

Post a Comment

इक्कीसवीं सदी के महिला कहानीकारों की कहानियों में स्त्री चेतना - नाज़िमा (Geeta Prakashan Bookswala's Anthology "शब्दानंद")

इक्कीसवीं सदी के महिला कहानीकारों की कहानियों में स्त्री चेतना 💐..............................................................................