(गीता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित साझा संकलन से)
बचाकर रखना है ,
इन प्रदीप्तमान मानवता के उजालो को।।
उजालो की चाहत सभी की है
अंधेऱा भाता किसी को नही है
रास्ता उजालो का आसान नही है,
स्वयं जलकर सूरज जगत को रौशन करता है
स्वयं अँधेरे में रहकर दीपक दुसरो को रौशनी देता है
दग्ध होकर स्वयं शहीदों ने
चीर गुलामी के अंधेरो को
आजादी से रौशन किया भारत को।
न जाने कितने गैलेलियो,अरस्तू,शिव ने गरल को पिया
न जाने कितने कृष्ण,अम्बेडकर ने तानों को सहा
न जाने कितने ईसा सूली पर चढ़े
न जाने कितने गुरु गोविंद सिंह ने अपने सीस दिये
न जाने कितने गुरु बालक दास ने बलिदान दिया
न जाने कितने दधिचियो ने अपने शरीर का दान किया।
न जाने कितने कर्ण ने अपने कवच कुंडल का परित्याग किया।
न जाने कितने एकलव्य ने स्वयं काट दिये अपने अगूंठे।
न जाने कितने राजा बलि ने अपने त्रिलोक को वार दिया।
न जाने कितने सिद्धार्थ,
वर्धमान व अशोक ने राजपाट छोड़ा,
न जाने कितने नरेंद्र,मूलशंकर ने घरबार छोड़ा
न जाने कितने मीरा,सुर,तुलसी,कबीर,नानक ने
पाखण्ड के अंधेरो पर प्रहार किया।
न जाने कितने करबला व महाभारत का युद्ध हुआ
तब जाकर मानवता हुई है प्रकाशित,परिभाषित
तब जाकर छाया है चहु ओर उजाला
अपने साधना,सेवा व त्याग से
बचाकर रखना है
इन प्रदीप्तमान मानवता के उजालों को।
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© श्रीमती श्वेता नवरंगे
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