काव्य धारा

ये मेरा जहाँ....
अक्सर मेरी कानों में
एक दर्दभरी गीत गूँजता रहता है
जो सदियों से.....
मेरे बाप, दादा...
परदादों के जीवन के साथ-साथ
अब मेरी भी नींद हराम करता है
जमाना बदलता है
रात होती है...
सुबह निकलती है
फिर भी वही दर्दभरी कहानी
वही जिंदगी
वही माहौल
ऐसा क्यों होताहै...?
मेरी ही जहाँ
मै गर्व के साथ कह नही सकता
ये मेरा जहाँ
फिर भी ये कैसा जहाँ..?
मुझे अपनों में पराया मेहसूसी..?
सारे जहाँ से अच्छा....
हिंदुस्था हमारा..
पाठशाला सहायक (हिंदी),
जिला परिषत उन्नत पाठशाला
बाणापुरम,
खम्मम (जिला)
99516 60789
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