(गीता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित साझा संकलन से)
मैं यासमीन, बेसिक शिक्षा परिषद के पी. एम श्री कंपोजिट स्कूल छिरौना ब्लाक चिरगांव, झांसी में एक शिक्षिका के रूप में कार्यरत हूं। आज मैं आप सभी के समक्ष एक शिक्षक होने के नाते हमारी क्या भूमिका होनी चाहिए इस बारे में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहती हूं।
हम सभी जानते हैं कि ग्रामीण परिवेश के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में हमारी भूमिका बच्चों को सिर्फ शिक्षित करने तक ही सीमित नहीं है। हम सभी विद्यालयों में आने वाले बच्चों की पारिवारिक परिस्थितियों से भली भांति परिचित हैं।
सर्वप्रथम हमें इन बच्चों को समय एवं उसकी महत्ता के बारे में समझाना होगा। यदि बच्चे समय की महत्ता को समझ जाएंगे तो बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत आने वाले विद्यालयों में बच्चों के देर से आने की समस्या का स्वत: ही हल हो जाएगा।
इसके पश्चात हमें बच्चों को अनुशासन एवं स्वच्छता के बारे में बताना होगा। बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने से पहले शिक्षक को स्वयं विद्यालय में अनुशासित होना पड़ेगा,साथ ही साफ सफाई एवं स्वच्छता की महत्ता को जब बच्चे जान जाएंगे तो उसी दिन से बच्चों में अनियमित( एक दिन ,दो दिन छोड़कर) विद्यालय आने की आदत में स्वत: ही सुधार होने लगेगा।
हमें इन बच्चों को शिष्टाचार जैसे'आप' का प्रयोग , उठने बैठने के तरीके, अभिवादन के तरीके, खाना खाने के व्यवहार, सहभागिता के नियम, कक्षा -कक्षा के ढंग आदि के बारे में भी बताना होगा। इसके अतिरिक्त शिक्षकों को बच्चों में समर्पण, करुणा, सहानुभूति, उदारता आदि के बारे में गतिविधियों के माध्यम से बताना होगा।
16 वर्ष के शिक्षक कार्यकाल में मेरा यह अनुभव रहा है कि यदि हम बच्चों के साथ आत्मीय संबंध रखते हुए उन्हें प्रतिदिन इन सभी बातों के बारे में बताते रहे तो हम उन्हें एक बेहतर छात्र बना सकते हैं। साथ ही ग्रामीण परिवेश के विद्यालयों में आने वाली समस्याएं जैसे छात्र-उपस्थिति, नियमित विद्यालय न आना, और गुणवत्ता जैसी समस्याएं स्वत: ही हल हो जाएगीं।
हम सभी शिक्षकों को इस तरह के प्रयास करते रहना चाहिए।
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© यासमीन
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