Friday, November 15

पर्यावरण - नीरज कुमार (गीता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित साझा संकलन से)

  (गीता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित साझा संकलन से)



      पर्यावरण

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पर्यावरण है तो हम हैं

जो मिला वो क्या कम है?

पर्यावरण है तो हम हैं


पर्वतों के दिल से उतरते वो झरने

पहाड़ों को पखारती वो नदियां

गंभीर स्वभाव को दर्शाता वो सागर

जिसके लहरों से टकराकर आनंदित होता मेरा मन

जंगलों के रूप में वो पेड़ों के समूह

जिनके छांव तले तपस्वियों ने दिखाएं अपने रूप

जीव जंतुओं का जो बना है आश्रय

मनुष्यों ने अपने कल्पनाओं को जहां पूर्ण किया है हर समय

इसे नष्ट न होने देने की हम खाएं कसम

अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति  से एक-एक वृक्ष लगाएं हम

हमारी नितांत आवश्यकताओं में वायु का है बड़ा योगदान

वायु बिना हम जी लेंगे ,गर  ऐसा है हमारा वहम

उस वहम को तोड़कर हम यथार्थ में जिएंगे तब

वायु को शुद्ध रखने की पूर्ण ताकत लगाएंगे जब

प्रकृति से खिलवाड़ हम पर है भारी पड़ रहा

विश्व आज बारूद के ढे़र पर है सड़ रहा

अपने पर्यावरण को बचाकर ही हम जी पाएंगे


वरना जिंदगी तो रहेगी पर जीते जी मर जाएंगे।

वरना जिंदगी तो रहेगी पर जीते जी मर जाएंगे।


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© नीरज कुमार

79033 62679
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