Sunday, May 29

जिंदगी - वी एन वी पद्मावती (काव्य धारा)

काव्य धारा

जिंदगी

यूँ तो जीवन यात्रा है सौ साल की, 
पाॅच साल तक गुजरेगी माँ के गोद में
न दुख की छाया, न निराशा की निर्लिप्तता, 
पच्चीस तक पढाई, कई अडचने, कई उथल-पुथल, 
असंतुलित मन, अस्पष्ट जीवन प्रणाली, 
किसीका सुनना गंवारा नही, 
तुलनात्मक जीवन, त्रस्त विचार जीवन शैली
हमें हम, अपने में कम, दूसरों में अधिक देखा करते हैं, 
कहने वालों की कमी नही, उद्धार करनेवाले कम हैं, 
मध्य वर्गीय परिवारों के क्या कहने
रोज कोई झगड़ा, कोई लडाई, 
नौकरी पाने तक हजारों समस्याएँ
जीवन में स्थिरता के लिए भाग-दौड
विवाह-संतान प्राप्ति  का पडाव जो गुजरा, 
पचास के पडाव तक पैसे बॅटोरने में उम्र गई, 
चिंता हुई न कम
सोचा था, तीर्थ यात्रा करना है, 
संतान का अभी स्थिर होना, विवाह बाकी था
अब हाल यह है, उठना- बैठना दुर्भर है
जीवन की थकान इतनी थी, 
नाम-जपन भी हाथ न होता था
मधुमेह-रक्तचाप ने देह में जगह बनाई
खाने-पीने से मन मसोस गया
बच्चों पर बोझ बनने से अच्छा, 
भगवान के बुलावे की राह देखना, 
अनायासेन मरणम, विना दैन्येन जीवनम,
देहान्ते तव स्मरणम, देहिमे परमेश्वरा |
कहते-कहते समाप्त हुआ जिन्दगी नामा|

वी एन वी पद्मावती
पाठशाला सहायक
जी जी एच एस तिरुमलगिरी
हैदराबाद 15
+91 99519 74900

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